मधुमेह के रोगियों में टीबी (ट्यूबरक्लोसिस) का खतरा क्यों ?

3

वर्ल्ड ट्यूबरक्लोसिस डे या विश्व टीबी दिवस हर साल 24 मार्च को मनाया जाता है। दुनियाभर में टीबी के सबसे ज्यादा मरीज भारत में हैं, जबकि डायबिटीज मरीजों के मामले में भारत, विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है। दरअसल टीबी और डायबिटीज का आपस में संबंध है, टाइप-2 डायबिटीज एक खतरनाक रोग है, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम कर देता है। यही कारण है कि डायबिटीज के रोगियों को टीबी और दूसरे इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है।

क्या है टीबी

टीबी यानी ट्यूबरक्यूलोसिस बैक्टीरियल संक्रमण है, जो फेफड़े को प्रभावित करता है। यह शरीर के भीतर वर्षो तक छिपा रहता है और किसी बीमारी के कारण इम्यून सिस्टम के कमजोर पड़ते ही सक्रिय हो जाता है। स्मोकिंग, अल्कोहल, ड्रग्स, संक्रमित व्यक्ति के साथ निकट संपर्क और कई तरह की बीमारियां जैसे डायबिटीज, एचआइवी और कैंसर टीबी के लिए रिस्क फैक्टर का काम करती हैं।

मुख्य लक्षण : लगातार तीन सप्ताह से ज्यादा समय तक खांसी, थकान, बुखार, वजन कम होना और रात में पसीना आना।

उपचार : टीबी पूरी तरह से ठीक हो सकती है अगर सही समय पर जांच हो और इलाज पूरा लिया जाए।

(ट्यूबरक्लोसिस)
(ट्यूबरक्लोसिस)

क्या है डायबिटीज

डायबिटीज दो तरह का होता है- टाइप वन एवं टाइप टू। टाइप वन डायबिटीज ऑटो-इम्यून बीमारी है जो किसी भी उम्र में हो सकती है। वहीं, टाइप टू जेनेटिक बीमारी है जो मुख्यत: बड़ी उम्र में देखी जाती है।

सामान्य लक्षण : बहुत प्यास एवं भूख लगना, थकान, दृष्टि में धुंधलापन, पैरों में सिहरन, वजन एकाएक कम होना एवं जल्दी-जल्दी पेशाब लगना, लो एवं हाई ब्लड-शुगर में लक्षण अलग-अलग होते हैं।

डायबिटीज और टीबी में समंध

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के अनुसार दुनियाभर में मौजूद टीबी मरीजों में से लगभग 15% मरीजों में डायबिटीज इसका कारण है। चिकित्सकों का मानना है कि डायबिटीज रोग टीबी के खतरे को दोगुना बढ़ा देता है। किसी भी व्यक्ति को डायबिटीज होने पर उसके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी रोगों से लड़ने की क्षमता धीरे-धीरे कम हो जाती है। ऐसे में डायबिटीज के मरीज के शरीर में टीबी के वायरस आसानी से पहुंच सकते हैं और उसे बीमार कर सकते हैं। इसके अलावा कई बार टीबी के वायरस व्यक्ति के अंदर होते हैं मगर रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण उभर नहीं पाते हैं। ऐसे में डायबिटीज होने पर ये वायरस शरीर पर हमला शुरू कर देते हैं और मरीज की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी इन्हें नहीं रोक पाती है।

टीबी के मरीजों को भी डायबिटीज का खतरा

अगर किसी व्यक्ति को टीबी है, तो उसे डायबिटीज होने का भी खतरा बढ़ जाता है।  टीबी होने पर शरीर में एक तरह का स्ट्रेस बोता है, जिससे ग्लूकोज टॉलरेन्स बढ़ता है। इस वजह से डायबिटीज हो सकता है। वहीं इन मामलों में डायबिटीज की दवा का असर बहुत कम होता है या बिल्कुल नहीं होता है।

कैसे हो सकता है बचाव

मधुमेह के मरीजों को अगर 2 हफ्ते से ज्यादा समय तक खांसी आती है, रात में सोते समय पसीना आता है या अचानक वजन घटने लगता है, तो तुरंत डॉक्टर से चेकअप करवाना चाहिए, ताकि सही समय पर जांच और इलाज के द्वारा दोनों रोगों को जल्द से जल्द रोका जा सके।

डायबिटीज में मुश्किल हो जाता है टीबी का इलाज

मधुमेह और टीबी दोनों होने पर मरीज का इलाज मुश्किल हो जाता है। दरअसल कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण टीबी की दवाइयों का असर धीरे-धीरे और देरी से होता है। यही कारण है कि डायबिटीज रोगियों को मल्टी ड्रग रेजीस्टेंट-टीबी का खतरा बढ़ जाता है। ये एक ऐसा टीबी रोग है, जिसका इलाज लंबे समय तक करना पड़ता है और ये आसानी से ठीक नहीं होता है। इसका खतरा उन लोगों को और ज्यादा होता है, जो सिगरेट और शराब का सेवन करते हैं।

खतरनाक हो सकते हैं डायबिटीज के परिणाम

मधुमेह में आदमी का शरीर इंसुलिन का उचित ढंग से इस्तेमाल नहीं कर पाता है और यदि मधुमेह नियंत्रित न किया गया तो इसके परिणाम खतरनाक हो सकते हैं जिसकी वजह से नसें, आंख की रेटीना, और रक्त वाहिनियां भी प्रभावित हो सकती हैं।

टीबी और डायबिटीज  का इलाज

अब टीबी और डायबिटीज का एक साथ एक ही टीके से इलाज संभव है। हाल ही में किए गए एक क्लिनिकल ट्रायल में सामने आए परिणाम के मुताबिक, जो लोग टाइप -1 डायबिटीज से पीड़ित हैं, उनमें यह वैक्सीन ब्लड शुगर लेवल कम करने में काफी प्रभावी हो सकता है। टाइप-1 डायाबिटीज वह डायबिटीज है, जिसमें पैनक्रियाज़ बिल्कुल भी इंसुलिन नहीं बनाता और अगर बनाता भी है, तो उसकी मात्रा बेहद कम होती है। इस ट्रायल में सामने आया कि 4 हफ्तों के अंतराल पर दो बार टीबी वैक्सीन यानी बीसीजी का वैक्सीन दिए जाने के 3 साल बाद दिखा कि टाइप-1 डायबिटीज से पीड़ित लोगों में एग्लीकेटिड हीमोग्लोबिन की मात्रा सही निकली और उनके शुगर लेवल में भी कुछ सुधार दिखा।

अमेरिका की मैसचूसिट्स जनरल हॉस्पिटल इम्यूनोबायलॉजी लैबरेटरी के डायरेक्टर डेनिस फॉस्टमेन ने कहा कि जो लोग लंबे समय से डायबिटीज से पीड़ित हैं, उनमें भी इस वैक्सीन के ज़रिए शुगर लेवल को सुधारा जा सकता है और यह क्लिनिकल ट्रायल इस बात का प्रमाण है। इस स्टडी के दौरान टीम ने 282 लोगों को शामिल किया, जिनमें से 52 लोग टाइप-1  डायबिटीज  से पीड़ित थे और बीसीजी वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल में भाग लिया।

डॉन फिनोमिनो

वहीं 230 ने मेकनिस्टिक स्टडीज़ के लिए ब्लड सैंपल दिए। रिजल्ट में सामने आया है कि डायबिटीज से पीड़ित जिन लोगों को बीसीजी वैक्सीन दिया गया, उनमें तीन साल के ट्रीटमेंट के बाद HbA1c का लेवल 10 % तक कम हो गया। निष्कर्ष निकाला गया कि इस क्लिनिकल रिजल्ट को टाइप-1  डायबिटीज  के इलाज में इस्तेमाल किया जा सकता है।

About Author

3 thoughts on “मधुमेह के रोगियों में टीबी (ट्यूबरक्लोसिस) का खतरा क्यों ?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *