ब्लैक फंगस या म्यूकोरमाइकोसिस क्या है ?और यह कैसे फैलता है ?

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काला फफूंद (Black fungus) या म्यूकर माइकोसिस (Mucormycosis)

काला फफूंद (Black fungus) या म्यूकर माइकोसिस (Mucormycosis) ए

ब्लैक फंगस या म्यूकोरमाइकोसिस क्या है ?और यह कैसे फैलता है ?

जहां एक ओर लोग कोरोना वायरस से जूझ रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ कोरोना से ठीक  हो रहे मरीजों के लिए ब्लैक फंगस काल बनकर खड़ा है। ब्लैक फंगस को म्यूकोरमाइकोसिस भी कहते हैं। ब्लैक फंगस कितना खतरनाक है इसका अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि हाल ही में मुंबई में ब्लैक फंगस से जूझ रहे 3 बच्चों को अपनी आंख गवानी पड़ी। खास बात है कि ब्लैक फंगस का कहर सिर्फ मुंबई में ही नहीं बल्कि देश के अलग-अलग हिस्सों में देखने को मिल रहा है

ऐसे व्यक्तियों के साइनस या फेफड़े हवा से फंगल बीजाणुओं को अंदर लेने के बाद प्रभावित होते हैं। कुछ राज्यों में डॉक्टरों ने अस्पताल में भर्ती या कोविड 19 से उबरने वाले लोगों में म्यूकोर्मिकोसिस के मामलों में वृद्धि देखी है, जिनमें से कुछ को तत्काल सर्जरी की आवश्यकता होती है। आमतौर पर, म्यूकोर्मिसेट्स स्वस्थ प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों के लिए एक बड़ा खतरा पैदा नहीं करते हैं।

ब्लैक फंगस क्या है ?

ब्लैक फंगस (Mucormycosis ) एक दुर्लभ फंगस इंफेक्शन है जो तेजी से नाक, आंख, दिमाग व साइनस में फैलता है।यह म्यूकर मोल्ड के संपर्क में आने के कारण होता है जो आमतौर पर मिट्टी, पौधों, खाद और सड़ने वाले फलों और सब्जियों में पाया जाता है। डॉ नायर कहते हैं, “यह सर्वव्यापी है और मिट्टी और हवा में और यहां तक ​​कि स्वस्थ लोगों की नाक और बलगम में भी पाया जाता है।”यह म्यूकोर्मिसेट्स के रूप में जाने वाले मोल्डों के समूह के कारण होता है। विशेषज्ञों के अनुसार ब्लैक फंगस पहले से ही वातावरण में मौजूद है, लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण कमजोर इम्यून सिस्टम के चलते यह लोगों को अपना शिकार बना रहा है।

डॉ नायर कहते हैं, “मधुमेह शरीर की प्रतिरक्षा सुरक्षा को कम करता है, कोरोनावायरस इसे बढ़ा देता है, और फिर स्टेरॉयड जो कोविड -19 से लड़ने में मदद करते हैं, आग में ईंधन की तरह काम करते हैं।” डॉ नायर – जो मुंबई के तीन अस्पतालों में काम करते हैं, जो दूसरी लहर में सबसे ज्यादा प्रभावित शहरों में से एक है – कहते हैं कि उन्होंने अप्रैल में लगभग 40 रोगियों को फंगल संक्रमण से पीड़ित देखा है। उनमें से कई मधुमेह रोगी थे जो घर पर ही कोविड-19 से ठीक हो गए थे। उनमें से ग्यारह को शल्य चिकित्सा द्वारा एक आंख निकालनी पड़ी। दिसंबर और फरवरी के बीच, पांच शहरों – मुंबई, बैंगलोर, हैदराबाद, दिल्ली और पुणे में उनके छह सहयोगियों ने संक्रमण के 58 मामले दर्ज किए। अधिकांश रोगियों ने कोविड -19 से ठीक होने के बाद 12 से 15 दिनों के बीच इसका अनुबंध किया।

ब्लैक फंगस के लक्षण

  • अगर किसी व्यक्ति के नाक से खून बह रहा हो या फिर काले रंग का कुछ निकल रहा हो या फिर पपड़ी जमना
  • चेहरे का एक तरफ से सूज जाना
  • सिरदर्द होना
  • नाक बंद हो जाना
  • उल्टी आना
  • बुखार आना
  • सीने में दर्द होना
  • मुंह के ऊपरी हिस्से या फिर नाक में घाव होना
  • आंखों का लाल होना
  • आंखों की रोशनी कम हो जाना

सबसे ज्यादा ब्लैक फंगस का खतरा इस प्रकार के व्यक्तियों में होता है 

  • कोरोना से संक्रमित गंभीर मरीज जो ऑक्सीजन सपोर्ट पर है
  • जो मरीज लंबे वक्त से स्टेरॉयड यूज कर रहे हैं
  • डायबिटीज के मरीज
  • जिन्हें कोई स्किन एलर्जी हो
  • कैंसर से ग्रसित मरीज
  • किसी अन्य पुरानी बीमारी से ग्रसित मरीज

ब्लैक फंगस से बचने के उपाय

  •  ब्लड शुगर को कंट्रोल में रखना चाहिए।
  • कोविड के इलाज में स्टेरॉयड का उचित उपयोग।
  • ऑक्सीजन ह्यूमिडिफायर में साफ पानी का उपयोग।
  • धूल वाली जगह पर मास्क पहनकर रखें।
  • मिट्टी, काई और खाद के सम्पर्क में आने से बचें।

ब्लैक फंगस का उपचार

ब्लैक फंगस के मामलों में इलाज के लिए एंटी-फंगल दवा ऐम्फोटेरीसिन – बी का उपयोग किया जा रहा है। ब्लैक फंगस का इलाज प्रिस्क्रिप्शन एंटिफंगल दवा से किया जाना चाहिए। कुछ मामलों में, इसे सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है; यह ऊपरी जबड़े और कभी-कभी एक आंख को भी नुकसान पहुंचा सकता है।

लेकिन इसे डॉक्टर की सलाह से लेना चाहिए। अगर आप में इस तरह के कोई लक्षण नजर आते हैं तो आपको डॉक्टर  को दिखाना चाहिए।

महामारी

कोविड-19

██ भारत██ जून 2021 की स्थिति में कोविड से जुड़े काले फफूंद के मामले वाले देश

कोविड-19 महामारी के दौरान भारत में कुछ ऐसे मामले सामने आए, जिसमें कोविड से ठीक होने के बाद कुछ मरीजों में म्यूकोर्मिकोसिस संक्रमण देखने को मिला। दिसम्बर 2020 के मध्य अहमदाबाद में 44 ऐसे मामले सामने आए जिसमें 9 लोगों की मौत भी शामिल थी। ऐसे मामले मुंबई और दिल्ली में भी देखने को मिले हैं। ये सारे मामले नाक, आँख और दिमाग के आसपास देखने को मिले हैं।

रिपोर्ट के अनुसार कोविड19 से जुड़े म्यूकोर्मिकोसिस के मामले काफी दुर्लभ हैं। 9 जनवरी 2021 तक दुनिया के अलग अलग कोने में इस तरह के आठ ही मामले दर्ज किए गए हैं। इन रिपोर्ट के अनुसार इस संक्रमण से सबसे ज्यादा खतरा मधुमेह के मरीजों को है। ज़्यादातर मामले अस्पताल में भर्ती के दौरान ही देखने को मिले हैं, जिसमें ये मामले ज़्यादातर अस्पताल में भर्ती होने के 10 से 14 दिन के बाद सामने आए हैं। एक अंदाजे के अनुसार लगभग 40% से 80% लोग, जो भी इस फंगस के संक्रमण में आए हैं, उनकी मौत हो गई है। ये मौतें मरीज के संक्रमण की जगह के साथ साथ उसके सेहत पर भी निर्भर करती है।

कोविड से जुड़े म्यूकोर्मिकोसिस के मामले मुख्य रूप से भारत में ही सामने आए हैं। एक स्पष्टीकरण के अनुसार भारत में ये मामले अत्यधिक कोविड संक्रमण के मामले और अधिक संख्या में मधुमेह के रोगियों के होने के कारण देखने को मिल रहे हैं। मई 2021 में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने कोविड19 से जुड़े म्यूकोर्मिकोसिस की पहचान करने और उसके इलाज हेतु दिशानिर्देश जारी किए हैं।

इनके लगातार बढ़ते मामलों को देखते हुए राजस्थान सरकार ने 19 मई 2021 को इसे महामारी घोषित कर दिया है। राजस्थान सरकार के साथ साथ हरियाणा, तमिलनाडु, तेलंगाना, गुजरात और बिहार ने भी इस फंगस को महामारी घोषित कर दिया।

 

कोविड-19 महामारी में अन्य संक्रमण मुख्य रूप से कोविड-19 से ठीक होने वाले मरीजों में देखने को मिल रही है। इन संक्रमणों में म्यूकोर्मिकोसिस और कैंडिडा से होने वाले संक्रमण भी शामिल हैं। इन संक्रमणों का सीधे तौर पर कोविड-19 से लेना देना नहीं है। लेकिन वायरस से लड़ने के बाद और स्टेरॉयड के अधिक इस्तेमाल से शरीर का इम्यून सिस्टम काफी कमज़ोर हो जाता है और आसपास की संक्रमण फैलाने वाले बीमारियों को अपना संक्रामण फैलाने का मौका दे देता है।

इस महामारी के दौरान भी ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिसमें लोग ऐसे संक्रमण से भी ग्रसित हो रहे हैं, जिसमें केवल कुछ कमजोर इम्यूनिटी वाले लोग ही संक्रमित हो रहे थे। यह संक्रमण लोगों से लोगों को नहीं होता है, अर्थात यह कोरोना की तरह फैलने वाली बीमारी नहीं है। लेकिन ये देखने को मिला है कि यह कोरोना से ठीक होने वाले मरीजों, जिसमें खास कर मधुमेह से ग्रस्त लोगों में सबसे अधिक देखने को मिला है।

मामले

म्यूकोर्मिकोसिस

म्यूकोर्मिकोसिस एक तरह का फंगल संक्रमण है, जो हमेशा से ही मानव के आसपास सड़े गले फल-सब्जियों या खाद में पाया जाता है। यह आमतौर पर मनुष्यों को संक्रमित नहीं करता है। यदि इससे कोई मनुष्य संक्रमित भी हो जाता है तो इम्यून सिस्टम उसे संक्रमण फैलाने से पूर्व ही नष्ट कर देता है। हालांकि कोविड-19 महामारी में ये देखने को मिला कि कई लोग जो ठीक हो रहे हैं, वे इस संक्रमण का शिकार हो रहे हैं। ऐसे मामलों में सबसे अधिक मामले मधुमेह रोगियों के सामने आए हैं। इसके अलावा कोविड के इलाज में स्टेरॉयड का जरूरत से ज्यादा उपयोग को भी एक कारण माना गया है, जिसके कारण इम्यून सिस्टम काफी कमजोर हो जाता है और इस काबिल नहीं होता कि वो किसी नए संक्रमण को नष्ट कर सके।

पहले कुछ म्यूकोर्मिकोसिस के मामलों में काला फफूंद देखने को मिला था। हालांकि इसके बाद सफ़ेद रंग के फफूंद का मामला भी सामने आ गया और इसी के साथ साथ कई मरीजों को दोनों तरह के फफूंद से ग्रस्त होने का भी मामला सामने आ चुका है। नए मामले में अजमेर के एक 40 वर्षीय शिक्षक को कोविड के इलाज से छुट्टी मिलने के बाद काला फंगस के लक्षण दिखने लगे, जिसके पश्चात उन्हें जांच के लिए अस्पताल लाया गया था। जांच में पता चला कि वे काला और सफ़ेद, दोनों तरह से फफूंद से संक्रमित हैं। डॉक्टरों के अनुसार यह इस तरह का पहला मामला है, जिसमें दोनों तरह के फंगल संक्रमण से कोई ग्रसित हुआ हो।

सफ़ेद फंगस (कैंडिडा) है। डॉक्टरों के अनुसार यह काले फंगस से कम घातक है और यह भी शरीर की इम्यून शक्ति के कमजोर होने पर ही होता है। एंटीबायोटिक दवा खाने पर यह दवा अच्छे बैक्टीरिया को भी नष्ट कर देते हैं। इनके नष्ट होने से सफ़ेद फंगस जैसे संक्रमण फैलाने वाली बीमारियाँ हमारे शरीर में फैलने लगते हैं। इसका संक्रमण गाल, गले के अंदर, जीभ और आंतों में भी हो सकता है, लेकिन यह दवा से आसानी से ठीक भी हो जाता है। सफ़ेद फंगस मुख्य रूप से गंदगी, नमी वाले स्थान पर ज्यादा समय तक रहने से फैल सकता है।

कानपुर में भी इसके दो मामले सामने आए हैं। दोनों ही मामलों में मरीज हाल ही में काले फंगस के लक्षण देखने को मिले थे। जिनके जांच के बाद उनमें सफ़ेद फंगस होने की पुष्टि की गई।

 

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