अस्थमा क्या है,और कैसे होता है?
अस्थमा क्या है?
श्वास नलियों में सूजन से चिपचिपा बलगम इकट्ठा होने, नलियों की पेशियों के सख्त हो जाने के कारण मरीज को सांस लेने में तकलीफ होती है। इसे ही अस्थमा कहते हैं। अस्थमा किसी भी उम्र में यहां तक कि नवजात शिशुओं में भी हो सकता है। अस्थमा की विशेषता ब्रोन्कियल ट्यूबों की सूजन के साथ होती है, जिसमें ट्यूबों के अंदर चिपचिपा स्राव का उत्पादन बढ़ जाता है। अस्थमा से पीड़ित लोगों में लक्षणों का अनुभव होता है सूजन, या बलगम से भर जाता है। अस्थमा के सामान्य लक्षणों में शामिल हैं:
- खाँसी, विशेष रूप से रात में
- घरघराहट
- साँसों की कमी
- सीने में जकड़न,
- दर्द, या दबाव
फिर भी, अस्थमा से पीड़ित हर व्यक्ति के लक्षण समान नहीं होते हैं। आपके पास ये सभी लक्षण नहीं हो सकते हैं, या आपके पास अलग-अलग समय पर अलग-अलग लक्षण हो सकते हैं। आपके अस्थमा के लक्षण एक अस्थमा के दौरे से दूसरे में भिन्न हो सकते हैं, एक के दौरान हल्के और दूसरे के दौरान गंभीर हो सकते हैं।
अस्थमा के शुरुआती लक्षण
अस्थमा के शुरुआती लक्षण जो अस्थमा के दौरे की शुरुआत में या उससे ठीक पहले होते हैं। ये लक्षण अस्थमा के जाने-माने लक्षणों से पहले शुरू हो सकते हैं और ये शुरुआती संकेत हैं कि आपका अस्थमा बिगड़ रहा है। लेकिन इन संकेतों को पहचानकर, आप अस्थमा के दौरे को रोक सकते हैं अस्थमा के दौरे के शुरुआती चेतावनी संकेतों में शामिल हैं:
- अक्सर खांसी, विशेष रूप से रात में
- अपनी सांस को आसानी से खोना या सांस की तकलीफ
- व्यायाम करते समय बहुत थका हुआ या कमजोर महसूस करना
- व्यायाम के बाद घरघराहट या खांसी
- थकान महसूस करना, आसानी से परेशान होना, जी मिचलाना या मूडी होना
- सर्दी या एलर्जी के लक्षण (छींकना, बहती नाक, खांसी, नाक की भीड़, गले में खराश और सिरदर्द)
- नींद न आना
अस्थमा अटैक के लक्षण
ब्रोन्कोस्पास्म, सूजन और बलगम का उत्पादन – सांस लेने में कठिनाई, घरघराहट, खांसी, सांस की तकलीफ और सामान्य दैनिक गतिविधियों को करने में कठिनाई जैसे लक्षण पैदा करते हैं। अस्थमा के दौरे के अन्य लक्षणों में शामिल हैं:
- जब घर के अंदर और बाहर दोनों जगह सांस की तेज आवाज हो
- खांसी जो बंद नहीं होगी
- बहुत तेज सांस लेना
- सीने में दर्द या दबाव
- बात करने में कठिनाई
- चिंता या घबराहट की भावना
- पीला, पसीने से तर चेहरा
- नीले होंठ या नाख़ून
बच्चों में अस्थमा के लक्षण
संयुक्त राज्य अमेरिका में अस्थमा 10 से 12% बच्चों को प्रभावित करता है और बच्चों में पुरानी बीमारी का प्रमुख कारण है। अज्ञात कारणों से, बच्चों में अस्थमा की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है। जबकि अस्थमा के लक्षण किसी भी उम्र में शुरू हो सकते हैं, अधिकांश बच्चों में 5 वर्ष की उम्र तक उनके पहले अस्थमा के लक्षण होते हैं।
- लगातार आंतरायिक खाँसी का आना|
- एक सीटी का बजना या सांस छोड़ते समय ध्वनी का आना|
- साँसों में कमी महसूस होना|
- थकान जो खराब नीद की वजह से हो सकती है|
- छोटे बच्चो में इस रोग के लक्षण एक सांस वायरस से होने वाले आवर्तक घबराहट हो सकते है| जैसे जैसे बच्चे बड़े होते है, सांस एलर्जी से जुड़ा अस्थमा अधिक सामान्य होता है|
- इस रोग के लक्षण अलग अलग बच्चों में भिन्न भिन्न हो सकते है, और समय के साथ इसके परिणाम खराब या बेहतर हो सकते है| आपके बच्चे के पास केवल एक लक्षण हो सकता है, जैसे की एक अकेली खाँसी और छाती का जकड़ना|
- यह कहना मुश्किल हो सकता है, की आपके बच्चे के लक्षण अस्थमा या कुछ और कारणों के कारण होते है|
असामान्य अस्थमा के लक्षणों के बारे में
अस्थमा वाले सभी लोगों में खांसी, घरघराहट और सांस लेने में तकलीफ के सामान्य लक्षण नहीं होते हैं। कभी-कभी व्यक्तियों में अस्थमा के असामान्य लक्षण होते हैं जो अस्थमा से संबंधित नहीं दिखाई देते हैं। कुछ “असामान्य” अस्थमा लक्षणों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं:
- तेजी से साँस लेने
- लम्बी सांस
- थकान
- ठीक से व्यायाम करने में असमर्थता (जिसे व्यायाम-प्रेरित अस्थमा कहा जाता है)
- सोने में कठिनाई या रात में अस्थमा
- चिंता
- घरघराहट के बिना पुरानी खांसी
अस्थमा के प्रकार
- एलर्जिक अस्थमा
- नॉनएलर्जिक अस्थमा
- मिक्सड अस्थमा
- एक्सरसाइज इनड्यूस अस्थमा
- कफ वेरिएंट अस्थमा
- ऑक्यूपेशनल अस्थमा
- नॉक्टेर्नल यानी नाइटटाइम अस्थमा
- मिमिक अस्थमा
- चाइल्ड ऑनसेट अस्थमा
- एडल्ट ऑनसेट अस्थमा
अस्थमा के प्रमुख कारण
आज के समय में अस्थमा का सबसे बड़ा कारण है प्रदूषण। कल कारखानों, वाहनों से निकलने वाले धूएं अस्थमा का कारण बन रहे हैं। सर्दी, फ्लू, धूम्रपान, मौसम में बदलाव के कारण भी लोग अस्थमा से ग्रसित हो रहे हैं। कुछ ऐसे एलर्जी वाले फूड्स हैं जिनकी वजह से सांस संबंधी बीमारियां होती हैं। पेट में अम्ल की मात्रा अधिक होने से भी अस्थमा हो सकता है। इसके अलावा दवाईयां, शराब का सेवन और कई बार भावनात्मक तनाव भी अस्थमा का कारण बनते हैं। अत्यधिक व्यायाम से भी दमा रोग हो सकता है। कुछ लोगों में यह समस्या आनुवांशिक होती है।
अस्थमा के प्रकार और उसके कारण
एलर्जिक अस्थमा: एलर्जिक अस्थमा के दौरान आपको किसी चीज से एलर्जी है जैसे धूल-मिट्टी के संपर्क में आते ही आपको दमा हो जाता है या फिर मौसम परिवर्तन के साथ ही आप दमा के शिकार हो जाते हैं।
नॉनएलर्जिक अस्थमा: इस तरह के अस्थमा का कारण किसी एक चीज की अति होने पर होता है। जब आप बहुत अधिक तनाव में हो या बहुत तेज-तेज हंस रहे हो, आपको बहुत अधिक सर्दी लग गई हो या बहुत अधिक खांसी-जुकाम हो।
मिक्सड अस्थमा: इस प्रकार का अस्थमा किन्हीं भी कारणों से हो सकता है। कई बार ये अस्थमा एलर्जिक कारणों से तो है तो कई बार नॉन एलर्जिक कारणों से। इतना ही नहीं इस प्रकार के अस्थमा के होने के कारणों को पता लगाना भी थोड़ा मुश्किल होता है।
एक्सरसाइज इनड्यूस अस्थमा: कई लोगों को एक्सरसाइज या फिर अधिक शारीरिक सक्रियता के कारण अस्थमा हो जाता है तो कई लोग जब अपनी क्षमता से अधिक काम करने लगते हैं तो वे अस्थमा के शिकार हो जाते हैं।
कफ वेरिएंट अस्थमा: कई बार अस्थमा का कारण कफ होता है। जब आपको लगातार कफ की शिकायत होती है या खांसी के दौरान अधिक कफ आता है तो आपको अस्थमा अटैक पड़ जाता है।
ऑक्यूपेशनल अस्थमा: ये अस्थमा अटैक अचानक काम के दौरान पड़ता है। नियमित रूप से लगातार आप एक ही तरह का काम करते हैं तो अकसर आपको इस दौरान अस्थमा अटैक पड़ने लगते हैं या फिर आपको अपने कार्यस्थल का वातावरण सूट नहीं करता जिससे आप अस्थमा के शिकार हो जाते हैं।
नॉक्टेर्नल यानी नाइटटाइम अस्थमा: ये अस्थमा का ऐसा प्रकार है जो रात के समय ही होता है यानी जब आपको अकसर रात के समय अस्थमा का अटैक पड़ने लगे तो आपको समझना चाहिए कि आप नॉक्टेर्नल अस्थमा के शिकार हैं।
मिमिक अस्थमा: जब आपको कोई स्वास्थ्य संबंधी कोई बीमारी जैसे निमोनिया, कार्डियक जैसी बीमारियां होती हैं तो आपको मिमिक अस्थमा हो सकता है। आमतौर पर मिमिक अस्थमा तबियत अधिक खराब होने पर होता है।
चाइल्ड ऑनसेट अस्थमा: ये अस्थमा का वो प्रकार है जो सिर्फ बच्चों को ही होता है। अस्थमैटिक बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है तो बच्चा इस प्रकार के अस्थमा से अपने आप ही बाहर आने लगता है। ये बहुत रिस्की नहीं होता लेकिन इसका सही समय पर उपचार जरूरी है।
एडल्ट ऑनसेट अस्थमा: ये अस्थमा युवाओं को होता है। यानी अकसर 20 वर्ष की उम्र के बाद ही ये अस्थमा होता है। इस प्रकार के अस्थमा के पीछे कई एलर्जिक कारण छुपे होते हैं। हालांकि इसका मुख्य कारण प्रदूषण, प्लास्टिक, अधिक धूल मिट्टी और जानवरों के साथ रहने पर होता है।
अस्थमा के इलाज के लिए परीक्षण
आमतौर पर विशेषज्ञ डॉक्टर ही अस्थमा को उसके लक्षणों से पता कर लेते हैं। लेकिन कभी-कभी कुछ लक्षण भ्रमित करते हैं जिसकी वजह से डॉक्टर भी अस्थमा की जांच के लिए तकनीक का सहारा लेते हैं, जिसके माध्यम से बीमारी के बारें पूरी जानकारी मिल जाती है, जिसके आधार पर रोग का इलाज कर मरीज को काफी हद तक ठीक किया जा सकता है। अस्थमा में खासतौर से फेफड़ों की जांच की जाती है, जिसके अंतर्गत स्पायरोमेट्री, पीक फ्लो और फेफड़ों के कार्य का परीक्षण शामिल है। इन जांचों को अलग-अलग स्थितियों में किया जाता है। अस्थमा के निदान के लिए इसके अतिरिक्त भी कई टेस्ट किए जाते हैं, जैसे- मेथाकोलिन चैलेंज, नाइट्रिक ऑक्साइड टेस्ट, इमेजिंग टेस्ट, एलर्जी टेस्टिंग, स्प्यूटम ईयोसिनोफिल्स टेस्ट के अलावा व्यायाम और अस्थमा युक्त जुकाम के लिए प्रोवोकेटिव टेस्ट किया जाता है।
अस्थमा का उपचार
अस्थमा का उपचार तभी संभव है जब आप समय रहते इसे समझ लें। अस्थमा के लक्षणों को जानकर इसके तुरंत निदान के लिए डॉक्टर के पाए जाएं। अस्थमा के उपचार के लिए इसकी दवाएं बहुत कारगर हो सकती हैं। अस्थमा से निपटने के लिए आमतौर पर इन्हेल्ड स्टेरॉयड (नाक के माध्यम से दी जाने वाली दवा) और अन्य एंटी इंफ्लामेटरी दवाएं अस्थमा के लिए जरूरी मानी जाती हैं। इसके अलावा ब्रोंकॉडायलेटर्स वायुमार्ग के चारों तरफ कसी हुई मांसपेशियों को आराम देकर अस्थमा से राहत दिलाते हैं। इसके अलावा अस्थमा इन्हेलर का भी इलाज के तौर पर प्रयोग किया जाता है। इसके माध्यम से फेफड़ों में दवाईयां पहुंचाने का काम किया जाता है। अस्थमा नेब्यूलाइजर का भी प्रयोग उपचार में किया जाता है। अस्थमा का गंभीर अटैक होने पर डॉक्टर अक्सर ओरल कोर्टिकोस्टेरॉयड्स का एक छोटा कोर्स लिए लिख सकते हैं। इसको दो सप्ताह तक प्रयोग करने पर कोर्टिकोस्टेरॉयड के दुष्प्रभाव होने की संभावना कम है। मगर इसे एक महीने से ज्यादा प्रयोग करने से इसके दुष्प्रभाव अधिक गंभीर और स्थायी भी हो सकते हैं।
अस्थमा से बचाव
- अस्थमा में इलाज के साथ बचाव की अवश्यकता ज्यादा होती है। अस्थमा के मरीजों को बारिश और सर्दी से ज्यादा धूल भरी आंधी से बचना चाहिए। बारिश में नमी के बढ़ने से संक्रमण की संभावना ज्यादा होती है। इसलिए खुद को इन चीजों से बचा कर रखें।
- ज्यादा गर्म और ज्यादा नम वातावरण से बचना चाहिए, क्योकि इस तरह के वातावरण में मोल्ड स्पोर्स के फैलने की संभावना बढ़ जाती है। धूल मिट्टी और प्रदूषण से बचें।
- घर से बाहर निकलने पर मास्क साथ रखें। यह प्रदूषण से बचने में मदद करेगा।
- सर्दी के मौसम में धुंध में जानें से बचें। धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों से दूर रहें। घर को डस्ट फ्री बनाएं।
- योग के माध्यम से अस्थमा पर कंट्रोल किया जा सकता है। सूर्य नमस्कार, प्राणायाम, भुजंगासन जैसे योग अस्थमा में फायदेमंद होते हैं।
- अगर आप अस्थमा के मरीज हैं तो दवाईयां साथ रखें, खासकर इन्हेलर या अन्य वह चीजें जो आपको डॉक्टर द्वारा बताई गई हैं।
- अस्थमा में खुद को सेफ रखने के साथ-साथ दूसरे व्यक्तियों का भी बचाव करें।
- एलर्जी वह जगह और चीजों से दूर रहें। हो सकते तो हमेशा गर्म या गुनगुने पानी का सेवन करें।
- अस्थमा के मरीजों का खानपान भी बेहतर होना चाहिए। अस्थमा के रोगियों को प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा वाली चीजों का सेवन कम से कम करना चाहिए। कोल्ड ड्रिंक, ठंडा पानी और ठंडी प्रकृति वाले आहारों का सेवन नहीं करना चाहिए। अंडे, मछली और मांस जैसी चीजें अस्थमा में हानिकारक होती है।
- अस्थमा के मरीजो को आहार में हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन करना चाहिए। पालक और गाजर का रस अस्थमा में काफी फायदेमंद होता है। विटामिन ए, सी और ई युक्त खाद्य पदार्थ अस्थमा मरीजों के लिए लाभकारी होते हैं। एंटीऑक्सीडेंट युक्त फूड के सेवन से रक्त में आक्सीजन की मात्रा बढ़ती है। आहार में लहसुन, अदरक, हल्दी और काली मिर्च को जरूर शामिल करें, यह अस्थमा से लड़ने में मदद करते हैं।
अस्थमा के उपचार के लिए घरेलू नुस्खे
- लहसुन दमा के इलाज में काफी कारगर साबित होता है। 30 मिली दूध में लहसुन की पांच कलियां उबालें और इस मिश्रण का हर रोज सेवन करने से दमे में शुरुआती अवस्था में काफी फायदा मिलता है।
- अदरक की गरम चाय में लहसुन की दो पिसी कलियां मिलाकर पीने से भी अस्थमा नियंत्रित रहता है। सुबह और शाम इस चाय का सेवन करने से मरीज को फायदा होता है।
- दमा रोगी पानी में अजवाइन मिलाकर इसे उबालें और पानी से उठती भाप लें, यह घरेलू उपाय काफी फायदेमंद होता है। 4-5 लौंग लें और 125 मिली पानी में 5 मिनट तक उबालें। इस मिश्रण को छानकर इसमें एक चम्मच शुद्ध शहद मिलाएँ और गरम-गरम पी लें। हर रोज दो से तीन बार यह काढ़ा बनाकर पीने से मरीज को निश्चित रूप से लाभ होता है।
- 180 मिमी पानी में मुट्ठीभर सहजन की पत्तियां मिलाकर करीब 5 मिनट तक उबालें। मिश्रण को ठंडा होने दें, उसमें चुटकीभर नमक, कालीमिर्च और नीबू रस भी मिलाया जा सकता है। इस सूप का नियमित रूप से इस्तेमाल दमा उपचार में कारगर माना गया है।
- अदरक का एक चम्मच ताजा रस, एक कप मेथी के काढ़े और स्वादानुसार शहद इस मिश्रण में मिलाएं। दमे के मरीजों के लिए यह मिश्रण लाजवाब साबित होता है। मेथी का काढ़ा तैयार करने के लिए एक चम्मच मैथीदाना और एक कप पानी उबालें। हर रोज सुबह-शाम इस मिश्रण का सेवन करने से निश्चित लाभ मिलता है।