WHO रिपोर्ट के अनुसार 2020-30 में कौन सी स्वास्थ्य समस्याएं और चुनौतियां हो सकती है ?

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दुनियाभर में स्वास्थ्य से जुड़े हितों पर नजर रखने वाली संस्था विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) यानी डब्ल्यूएचओ (WHO) ने 13 जनवरी को एक रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसमें उन्होंने अगल एक दशक (2020 से 2030) के बीच स्वास्थ्य के क्षेत्र में आने वाली चुनौतियों के बारे में बताया है।

पर्यावरण से जुड़े स्वास्थ्य के खतरे हो सकते है

हवा में घुले प्रदूषण के कारण हर साल 70 लाख से ज्यादा लोगों की मौत होती है। जलवायु परिवर्तन के कारण संक्रामक रोग जैसे- मलेरिया, वायरस आदि पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग के कारण दुनियाभर में होने वाली एक चौथाई मौतों का कारण हार्ट अटैक, स्ट्रोक, फेफड़ों का कैंसर और सांस की बीमारियां बन रही हैं। 2019 में 50 देशों के 80 से ज्यादा शहरों ने WHO के एयर क्वालिटी गाइड लाइन्स को फॉलो करने का वादा किया है।

3.3 2030 तक एड्स, तपेदिक, मलेरिया और उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों की महामारियों को समाप्त करना तथा हेपेटाइटिस, जल जनित रोगों और अन्य संचारी रोगों से निपटना। 3.4 2030 तक रोकथाम और उपचार के माध्यम से गैर-संचारी रोगों से होने वाली असामयिक मृत्यु दर को एक तिहाई तक कम करना तथा मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देना।

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विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, साल 2030 तक इन स्वास्थ्य समस्याओं और चुनौतियों का सामना हो सकता है: 

  • खतरनाक रसायनों और वायु, जल, और मृदा प्रदूषण से होने वाली बीमारियों और मौतों में कमी 
  • तम्बाकू नियंत्रण पर WHO फ़्रेमवर्क कन्वेंशन को लागू करना 
  • विकासशील देशों में संचारी और गैर-संचारी रोगों के लिए टीकों और दवाओं का अनुसंधान और विकास 
  • विकासशील देशों में स्वास्थ्य वित्तपोषण और स्वास्थ्य कार्यबल की भर्ती, विकास, प्रशिक्षण, और प्रतिधारण में बढ़ोतरी 
  • राष्ट्रीय और वैश्विक स्वास्थ्य जोखिमों की शीघ्र चेतावनी, जोखिम न्यूनीकरण, और प्रबंधन के लिए क्षमता बढ़ाना 
  • गैर-संचारी रोगों से होने वाली समयपूर्व मृत्यु दर में एक तिहाई की कमी 
  • मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देना
स्वास्थ् को प्रभावित करने वाले कुछ कारक ये हैं:

पर्यावरण, व्यवहार, सामाजिक कारक, सांस्कृतिक कारक, आर्थिक कारक, राजनीतिक कारक. 

संक्रामक रोगों का खतरा हो सकता है

WHO के अनुसार साल 2020 में एचआईवी (HIV), टीबी, हेपेटाइटिस, मलेरिया और सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिजीजेज (STDs) के कारण लगभग 40 लाख लोगों की मौत होगी, जिनमें से ज्यादा संख्या गरीब लोगों की होगी। जिन रोगों से वैक्सीन (टीके) के द्वारा बचाव संभव है, 2019 में ऐसी बीमारियों के कारण भी 140,000 लोगों की मौत हुई है, जिनमें ज्यादातर बच्चे थे। पोलियों को दुनियाभर में खत्म कर दिया गया है, बावजूद इसके पिछले साल इसके 156 मामले सामने आए।
WHO के अनुसार इन बीमारियों को राजनीतिक इच्छाशक्ति के बिना नहीं खत्म किया जा सकता है।

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महामारी जैसे रोग हो सकते है

कई ऐसी बीमारियां हैं, जो हर साल दुनिया के सामने महामारी की तरह आ जाती हैं, मगर इन्हें रोकने का कोई सॉलिड उपाय नजर नहीं आता है। एयरबॉर्न वायरस जैसे एंफ्लुएंजा का खतरा सबसे ज्यादा है। इसके अलावा मच्छरों से फैलने वाली बीमारियां बहुत सी समस्याए लाने  वाली है ,ये बीमारियां हैं- डेंगू, मलेरिया, ज़ीका वायरस, चिकनगुनिया और पीला बुखार आदि। मच्छरों से फैलने वाली बीमारियों को रोकने के लिए फिलहाल बचाव ही सबसे आसान उपाय है।

गलत पदार्थ से फैलने वाली बीमारियां हो सकतीहै

आपको जानकर हैरानी होगी कि दुनिया की एक-तिहाई बीमारियों का कारण- पौष्टिक खाने की कमी, अनहेल्दी चीजें खाना और गलत आहार हैं। आज दुनियाभर में लोग जो भी चीजें खा रहे हैं उनमें शुगर, सैचुरेटेड फैट, ट्रांस फैट और नमक की मात्रा बहुत ज्यादा है। इसके कारण लोग मोटापे, वजन बढ़ने, डाइट से जुड़ी दूसरी बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। वहीं तंबाकू वाले प्रोडक्ट्स और ई-सिगरेट्स के कारण भी सैकड़ों खतरनाक बीमारियों का खतरा बढ़ा है।

 कम उम्र में मौतों की संख्या बढ़ सकती  है

WHO के अनुसार 10 से 19 साल की उम्र में हर साल 10 लाख से ज्यादा बच्चे मरते हैं। इन मौतों का मुख्य कारण- रोड एक्सीडेंट, एचआईवी, सुसाइड, लोअर रेस्पिरेटरी इंफेक्शन्स, आपसी लड़ाई-झगड़े आदि हैं। युवाओं में एल्कोहल, तंबाकू और ड्रग्स के मामले भी पहले की अपेक्षा बढ़े हैं।

दवाओं का असर कम हो सकता है

जिस तेजी से लोग दवाएं खा रहे हैं, उसके अनुसार आने वाले कुछ सालों में लोगों पर कुछ खास दवाओं का असर होना बंद हो सकता है। एंटी-माइक्रोबियल रेजिस्टेंस (AMR) इस समय की एक कड़वी सच्चाई है। इंसानों द्वारा खोजी गई बहुत सारी एंटीबायोटिक दवाएं आज उस पर असर नहीं कर रही हैं। एक बिना एक्सपर्ट्स की सलाह के दवाएं खाना, झोलाछाप डॉक्टर्स, अच्छी दवाओं की कमी, सस्ती दवाओं का आकर्षण, साफ सफाई की कमी, इंफेक्शन से बचाव के लिए जरूरी कदम न उठाना आदि है।

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पानी की सुविधाओं में कमी हो सकती है

पानी भी आने वाले सालों में एक बड़ी चुनौती बनने वाला है। शरीर, घर, बर्तन, सब्जी, खाने की चीजें आदि को साफ करने के लिए पानी की जरूरत पड़ती है। आने वाले सालों में बहुत सारे देश जब पानी की कमी से जूझ रहे होंगे, तब पानी से चीजों को साफ करने के तरीके पर पाबंदी लगेगी और बीमारियां तेजी से फैलना शुरू हो जाएंगी। इसके अलावा मेडिकल फील्ड में भी साफ-सफाई की कमी के कारण बहुत सारे खतरे बढ़ेंगे। इसी तरह गंदे पानी के प्रयोग के कारण भी बहुत सारी बीमारियां बढ़ रही हैं।

लोगों का विश्वास जीतना चुनौती  बन  सकती  है

रोगी और डॉक्टर या हेल्थ एक्सपर्ट्स के बीच एक विश्वास बेहद जरूरी है। इंटरनेट पर बढ़ती अफवाहों से हेल्थ सेक्टर भी अछूता नहीं है। तरह-तरह की गलत धारणाओं और अफवाहों के कारण लोगों का विश्वास अस्पतालों, डॉक्टरों, वैक्सीन्स, दवाओं आदि से उठ रहा है। लोग इंटरनेट पर पढ़ने के बाद डॉक्टरों के ज्ञान पर संदेह कर रहे हैं, युवा कंडोम का इस्तेमाल करना गलत समझ रहे हैं और टीकों के बारे में तरह-तरह की अफवाहें फैलाई जा रही हैं। इसलिए अगल दशक में लोगों का विश्वास जीतना भी हेल्थ सेक्टर के लिए बड़ा चैलेंज होगा।

डॉक्टरों और हेल्थ वर्कर्स की कमी हो  सकती है

आने वाले सालों में डॉक्टरों और हेल्थ सेक्टर में काम करने वाले लोगों की कमी भी एक बड़ा चैलेंच साबित होगी। दुनियाभर में हेल्थ एक्सपर्ट्स की कमी के कारण लोगों तक सही समय पर सही इलाज नहीं पहुंच पा रहा है, जिसके कारण करोड़ों लोगों की मौत होती है। WHO के अनुसार साल 2030 तक लगभग 1 करोड़ 80 लाख नए हेल्थ वर्कर्स की जरूरत पड़ेगी। इसके अलावा कम और मध्यम आय वाले देशों में 90 लाख नर्सों और दाइयों की जरूरत पड़ेगी। इतनी बड़ी संख्या में हेल्थ वर्कर्स की कमी को पूरा करना दुनियाभर के देशों के लिए बड़ी चुनौती है।

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