गर्भावस्था में रखेगी यह ध्यान तो बीमारियों के चक्रव्यूह में नही फंसेगा अभिमन्यू

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गर्भावस्था में रखेगी यह ध्यान तो बीमारियों के चक्रव्यूह में नही फंसेगा अभिमन्यू

माँ की  कोख  में  ही मधुमेह  व् एनीमिया के इलाज के लिए प्रिवेंटिक हेल्थकेयर की कार्ययोजना , जानिए क्या है कहानी,

वाराणसी :-

जीवनशैली में परिवर्तन व कम का तनाव  लोगो को तेजी से बीमार करता जा रहा है  ,मधुमेह  हाइपरटेंशन आदि ऐसी बीमारी है जो तेजी से लोगो को पीड़ित करती जा रही है,सबसे अधिक दिक्कत  इन  बीमारियों  से पीड़ित  गर्भवती महिलाओ  को  होती  है, ऐसे में गर्भवती  महिला  पहले से इन चीजो का ध्यान रखेगी तो उनका अभिमन्यू बीमारियों के चक्रव्यूह  में नही फसेगा

बनारस के एक तारांकित होटल में गुरुवार को गाइनकोलोजिस्ट  डा. हेमा दिवाकर  ने बताया की हमारे देश में 80 मिलियन तक डायबीटीज  पहुंच चुकी है, अगले  दशक में पीडितो की संख्या  74 प्रतिशत इजाफा  होने की सम्भावना  है  यदि  मोटापा  हाइपरटेंशन व एनीमिया से पीड़ितो की संख्या को जोड़ दिया जाये तो इनकी संख्या बहुत अधिक हो जाएगी,इंटरनेशनल फेडरेशन  ऑफ़ गाइनकोलोजी  आब्सीटीट्रिक्स  (फिगो )की  डा.हेमा की  हमारे  हेल्थ  सेंटर के पास गैरसंचारी  बीमारियों  के प्रसार का  सामना करने के लिए पर्याप्त ढांचा नही है,इसका समाधान कोख में ही करना जरूरी है , मेडिकल साइंस इतना आगे बढ़ चुका है की  अब माँ  की कोख  में ही  मधुमेह  व एनीमिया  की पहचान  करके  उसका  रोकथाम  किया जा सकता है ,डा. मोहसे एचओडी  चेयर पीएनसीडीसी फिगो  ने बताया की विकाशशील देशो में  गर्भवती महिलाओ  में  एनीमिया  व  मधुमेह  की  जाँच  व स्क्रीनिंग  की  अच्छी सुविधा नही है,ऐसे  हालात  में  डिवाइस के माध्यम से गर्भवती महिला अनुशासित जीवन जी सकती है , फिगो पीएनसीडीसी की सदस्य  डा.लियोना  ने कहा  की हांगकांग के  माडल  को  भारत में  अपनाया  जा  सकता है,भारत  में ऐसी  मजबूत  व्यवस्था  होनी  चाहिए,इससे  गर्भवती  महिलाओ  की जाँच  सही  ढंग  से किया   जा सके, डा. राजेश जैन ने कहा की  केंद्र व राज्यों की विभिन्न एजेंसियों को आपस में जुड़कर सहयोग के साथ काम करने  की आवश्यकता है , मल्टीस्टेकहोल्डर  इंगेजमेंट व फिट  इंडिया  अभियान  में  सहयोग करने की जरूरत है ,उन्होंने कहा की  फिगो ने भारत में सार्वजनिक व निजी अस्पतालों में हेल्थ केयर सेवा की क्षमता बढ़ाने के लिए पायलट प्रोजेक्ट लांच किया, जो गर्भवती महिलाओ में मधुमेह व एनीमिया के लक्षण की बेहतर स्क्रीनिंग कर सकेगा, अभियान के तहत पिछले डेढ़ साल में 1200 डाक्टर व 844 स्टाफ  नर्सो को  ट्रेनिग  दी जा चुकी  है ,उन्होंने  कहा की महिलाओ  को खुद  इन  बीमारियों  के प्रति सजग रहने की जरूरत है और गर्भवती  होने  से पहले  ही सारी  जाँच करा लेती है तो स्वस्थय बच्चे के जन्म में  आने वाली  बाधा दूर  हो जायेगी

यह  पूरा  आर्टिकिल वाराणसी  पत्रिका से लिया गया  है जिसका लिंक यह है <<यहाँ क्लिक करे>>  

गर्भकालीन मधुमेह या जेस्टेशनल डायबिटीज सामान्य डायबिटीज की तरह ही एक आम समस्या है लेकिन यह महिलाओं को प्रेगनेंसी (gestation) के दौरान होती है। प्रेगनेंट महिला के शरीर में ब्लड ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाने के कारण उसे यह समस्या होती है जिसके कारण उसकी प्रेगनेंसी प्रभावित होती है और उसके बच्चे के सेहत पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। हालांकि बच्चे को जन्म देने के बाद ब्लड शुगर लेवल आमतौर पर सामान्य हो जाता है। लेकिन प्रेगनेंसी के दौरान यदि महिला जेस्टेशनल डायबिटीज से पीड़ित हो तो उसे टाइप 2 डायबिटीज होने की संभावना भी बहुत ज्यादा होती है।

जेस्टेशनल डायबिटीज की समस्या महिलाओं में प्रेनगेंसी के दौरान हार्मोन में परिवर्तन (Changes in hormones) के कारण होती है। जब कोई महिला गर्भवती होती है तो उस दौरान महिला के शरीर में कॉर्टिसोल, एस्ट्रोजन एवं लैक्टोजन जैसे कुछ विशेष हार्मोन्स का स्तर बढ़ जाता है जिसके कारण महिलाओं के शरीर में रक्त शर्करा का प्रबंधन गड़बड़ हो जाता है। इस स्थिति को इंसुलिन रेजिस्टेंस कहते हैं।

इस दौरान यदि इंसुलिन उत्पन्न करने वाला अंग अग्न्याशय (pancreas) पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं उत्पन्न करता है तो इन हार्मोन्स का स्तर वैसे ही बना रहता है और रक्त शर्करा का स्तर (blood sugar levels) अधिक बढ़ जाता है जिसके कारण गर्भवती महिला को जेस्टेशनल डायबिटीज हो जाती है। आपको बता दें कि इंसुलिन एक हार्मोन है जो हमारे शरीर में अग्न्याशय (pancreas) की विशेष कोशिकाओं में बनता है और शरीर को प्रभावी तरीके से ग्लूकोज को एनर्जी के रूप में मेटाबोलाइज करने के लिए अनुमति देता है।

Gestational Diabetes Images, Stock Photos &amp; Vectors | Shutterstock

 

जोखिम घटक

गर्भकालीन मधुमेह के विकसित होने के पारंपरिक जोखिम कारक निम्न हैं:

  • गर्भकालीन मधुमेह या पूर्वमधुमेह, ग्लूकोज़ असह्यता, या भूखे रहने पर रक्तशर्करा की अधिकता का पहले कभी किया गया निदान
  • किसी प्रथम दर्जे के संबंधी में टाइप 2 मधुमेह का पारिवारिक इतिहास
  • माता की उम्र – स्त्री की उम्र के बढ़ने के साथ उसका जोखिम घटक भी बढ़ता है (विशेषकर 35 वर्ष से अधिक की स्त्रियों के लिये)
  • नस्लीय पृष्ठभूमि – (अफ्रीकी-अमेरिकी, अफ्रीकी-कैरिबियाई, मूल अमेरिकी, हिस्पैनिक, प्रशांत द्वीपनिवासी और दक्षिण एशियाई मूल के लोगों में उच्चतर जोखिम कारक होते हैं)
  • अधिक वजनमोटापा या अत्यधिक मोटापा जोखिम को क्रमशः 2.1, 3.6 और 8.6 के कारक के द्वारा बढ़ा देता है।
  • कोई पूर्व गर्भाधान, जिसमें बच्चे का जन्मभार उच्च रहा हो (>90वां सेंटाइल, या >4000 ग्राम (8 पौंड12.8 औंस))
  • पिछली असफल प्रसूति का इतिहास

इसके अतिरिक्त, आंकड़े यह दर्शाते हैं कि धूम्रपानकर्ताओं में जीडीएम (GDM) का जोखिम दोगुना होता है। बहुपुटिक अंडाशय रोगसमूह भी एक जोखिम घटक है,हालांकि इससे संबंधित प्रमाण विवादास्पद हैं। कुछ अध्ययनों में और विवादास्पद जोखिम घटकों, जैसे छोटे कद, पर ध्यान दिया गया है।

जीडीएम (GDM) से ग्रस्त लगभग 40-60% स्त्रियों में कोई प्रत्यक्ष जोखिम घटक नहीं पाया जाता है, इसलिये कई लोग सभी स्त्रियों की जांच की सलाह देते हैं। गर्भकालीन मधुमेह से ग्रस्त स्त्रियों में कोई लक्षण नहीं होते हैं (व्यापक जांच की एक और वजह), लेकिन कुछ स्त्रियों में अधिक प्यास, अधिक पेशाब होना, थकान, मतली और उल्टी, मूत्राशय का संक्रमण, फफूंदी का संक्रमण और धुंधली दृष्टि आदि देखे जा सकते हैं।

कोई शिशु अपनी आंख खोलने से पहले क्या जानता है
वैज्ञानिक रिपोर्टर और लेखक एनी मर्फ़ी पॉल ने एक टैड टॉक में एक शोध अध्ययन के बारे में बताया कि किस तरह अजन्मा बच्चा मां की कोख में ही चखने और सूंघने की शक्ति विकसित करता है. उन्होंने कहा, ‘एक प्रयोग में, गर्भवती महिलाओं के एक समूह को उनकी तीसरी तिमाही में बहुत सारा गाजर का जूस पीने को दिया गया. जबकि दूसरे समूह की गर्भवती महिलाओं को पीने के लिए केवल पानी दिया गया. छह महीने बाद, उन महिलाओं के नवजात बच्चों को गाजर के रस में मिला सीरियल खाने को दिया गया और उनके चेहरे के भाव परखे गए. गाजर का जूस पीने वाली मांओं के बच्चों ने गाजर के स्वाद वाली सीरियल बड़े आराम से खाया और उनके चेहरे के भाव बता रहे थे कि वह उन्हें बड़ा अच्छा लग रहा था.

प्रसूति और स्त्री रोग विज्ञानी लम्बे समय से सुरक्षित जन्म, जन्म के समय माता की देख-रेख और बच्चे के विकास जैसी बातों पर ध्यान देते आए हैं. इस बारे में बहुत शोध नहीं हुआ कि किस तरह कोख में बीता समय बच्चे की दीर्घकालीन सेहत पर असर डाल सकता. पर यह सब 1989 में, ब्रिटिश फिज़िशियन और एपीडेमियोलॉजिस्ट (महामारी विशेषज्ञ) डेविड बार्कर द्वारा सेट जर्नल में प्रकाशित एक पेपर के बाद बदल गया. उन्होंने हर्टफोर्डशायर, यूके के 5654 पुरुषों के आंकड़ों के आधार पर पाया कि इस समूह में जन्मे लोगों में से जिनका वजन जन्म के समय कम था और एक साल की उम्र तक भी वजन कम ही रहा, उनमें दिल के रोगों से मृत्यु होने की दर अधिक थी.

डेविड बार्कर की बात को इस तरह समझें. अगर कोई बच्चा हर्टफोर्डशायर, यूके में 1923 में जन्मा हो, जन्म के समय उसका वजन कम रहा हो और एक साल की आयु तक भी उसका वजन कम ही रहा हो, तो जब वह बच्चा लगभग सत्तर साल का होगा तो उसकी दिल के रोगों से मरने की सम्भावना अधिक होगी. 1980 के दशक में, वैज्ञानिक दिल के रोगों को देखते हुए उसे जन्म के भार से नहीं जोड़ रहे थे. जीवनशैली, आहार और अनुवांशिक कारकों को दिल के रोगों की वजह माना जाता था. परन्तु डेविड बार्कर ने कहा कि हटफोर्डशायर स्टडी में दिल के रोग उस जेनेटिक प्रोग्रामिंग के कारण थे जो मां की कोख में हुई थी. उनका मानना था कि गर्भनाल की बाधा को पार करके होने वाले ट्रांसमिशन, एक मां द्वारा अपने भ्रूण को भेजे जाने वाले “बायोलॉजिकल पोस्टकार्ड” का काम करते थे. ये पोस्टकार्ड भ्रूण को इस दुनिया की जानकारी देते थे. यदि वे एक शान्तिपूर्ण और सम्पन्न दुनिया का सन्देश देते, तो भ्रूण का विकास स्वस्थ होता. अगर पोस्टकार्डों में दुख का सन्देश जाता, तो एपीजेनेटिक प्रभावों की वजह से, बच्चे को जीवन में आगे जाकर सेहत से जुड़ी समस्याएं हो सकती थीं.

शुरुआत में, डेविड बार्कर के अध्ययन पर इतना ध्यान नहीं दिया गया. पर समय के साथ; भारत, फिनलैंड, न्यूज़ीलैंड, चीन और कनाडा में भी ऐसे शोध प्रकाशित होने लगे जो डेविड बार्कर को सही सिद्ध करते थे. डॉ रोज़बूम डच हंगर विंटर स्टडी में मां और बच्चे की सेहत पर पड़ने वाले असर पर काम कर चुकी थीं, उन्होंने भी डेविड के साथ काम किया. डेविड के शोध को सम्मान देने के लिए, फीटल ओरिजिन्स को बार्कर्स हाइपोथीसिस के नाम से भी जाना जाता है.

भ्रूण कोई ताबुला रास या पहले से प्रोग्राम किया गया रोबोट नहीं है. अभिमन्यु और अष्टावक्र की कहानियां और वैज्ञानिक शोध हमें इस दिशा में संकेत करते हैं कि मां और भ्रूण परासरण में होते हैं और इस सायुज्यता के माध्यम से भ्रूण उस दुनिया के बारे में सीखता है जिसमें उसका प्रवेश होने वाला है. माता-पिता की ओर से मिलने वाला जेनेटिक योगदान एक शुरुआत भर है. माता-पिता का आपसी सम्बन्ध, उनके सुख और दुःख, कोख में रहने वाले बच्चे को सन्देश देते हैं.

 

https://www.diabetesasia.org/hindimagazine/category/gestational-diabetes/

 

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