मधुमेह के रोगियों के लिए प्राकृतिक उपचार कौन से है ?
प्राकृतिक उपचार मधुमेह रोगियों के लिए
भारत में मधुमेह से पीड़ित लोगों की संख्या में वृद्धि के साथ ही मधुमेह के उपचार व रोकथाम के लिए आए कुछ नए उपचार के प्राकृतिक तरीकों ने हाल के दिनों में लोकप्रियता हांसिल की है। शरीर में रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रण में रखने के लिए ली जाने वाली दवाओं के कुछ साइड इफैक्ट हैं, जबकि प्रकृतिक उपचारों में ऐसा नहीं है। वे ज्यादा कारगर हैं और साइड-इफैक्ट मुक्त भी हैं।
क्रैश डाइट
हाल ही में ब्रिटिश वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक शोध अध्ययन से पता चला कि कैसे अल्पावधि क्रेश डाइट की मदद से शरीर में रक्त शर्करा के स्तर को बहाल कर, मधुमेह पीड़ित व्यक्तियों में टाइप 2 मधुमेह को सामान्य किया जा सकता है।
एक्यूप्रेशर और रिफ्लैसोलोजी
एक्यूप्रेशर मधुमेह सहित कई अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के निदान के रूप में उभरते प्राकृतिक उपचार में से एक है। मधुमेह के इलाज के अंतर्गत मधुमेह से प्रभावित अंगों को पहचानकर उनके एक्यूप्रेशर बिंदुओं के माध्यम से मधुमेह का इलाज किया जाता है
होमियोपथी और नैचुरोपथी
भारत में मधुमेह के उपचार व रोकथाम के लिए होम्योपैथिक दवाओं का उपयोग बढ़ा है। इससे शरीर में रक्त शर्करा के स्तर को सामान्य करने में सकारात्मक परिणाम मिले हैं। वहीं नेचुरोपैथी में उपचार के लिए आहार, व्यायाम (योग) और भाप स्नान का एक संयोजन शामिल होता है।
प्राकृतिक चिकित्सा
प्राकृतिक चिकित्सा दरअसल स्वस्थ जीवन जीने की कला व स्वस्थ रहने का विज्ञान है। प्राकृतिक चिकित्सा का मकसद है मधुमेह रोगी को दोबारा प्रकृति के करीब लाकर उसे स्वास्थ के प्रति जागरूक व आत्मनिर्भर बनाना। प्राकृतिक चिकित्सा में मधुमेह रोगी का उपचार करते समय उसके सामान्य स्वास्थ्य को सुधारने पर खास ध्यान दिया जाता है। मधुमेह रोगी के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर उसके पाचनतंत्र को शक्तिशाली बनाने की कोशिश की जाती है। साथ ही रोगी की मानसिक स्थिति में सकरात्मक सुधार लाकर उसे शारीरिक श्रम व व्यायाम करने के लिए प्रेरित किया जाता है।
योग
नियमित रूप से टहलने के अलावा नियमित रूप से योग का अभ्यास मधुमेह के उपचार व रोकथाम में बेहद मददगार होता है। मधुमेह के लिए कुछ विशेष आसन, जैसे पश्चिमोत्तानासन, मंडूकासन, वक्रासन, योगमुद्रासन, उत्तानपादासन, नौकानासन,पवनमुक्तासन तथा शवासन काफी लाभदायक होते हैं।
रत्न एवं प्राकृतिक चिकित्सा
प्राकृतिक चिकित्सा के दृष्टिकोण से मधुमेह के कारण
प्राकृतिक चिकित्सा का मानना है कि सभी रोग प्राकृति के नियमों के उल्लंघन का परिणाम हैं । मधुमेह भी इनमें से एक है । प्राकृतिक चिकित्सा के आचार्य डॉ. हेनरी लिंडलार ने इसे प्रकार से व्यक्त किया है विशिष्ट प्राकृतिक उपचारप्राकृतिक उपचारों को साधारणत: दो वर्गों में विभाजित किया जाता कहलाते हैं । इनमें पेट पर गरम ठंडा सेंक, पेट पर मिट्टी की पट्टी, आश्याकतानूसार एनिमा का प्रयोग तथा कटिस्नान आदि हैं। इसके अतिरिक्त कुछ विशिष्ट उपचार होते हैं जो रोग की विशेष स्थिति को देखकर किए जाते हैं। जैसे मिट्टी का लेप तथा किसी विशेष स्थान की लपेट आदि ।
मधुमेह रोग में कटिस्नान, पेट की लपेट, अग्नाशय के स्थान पर मीट्टी की पट्टी तथा वहाँ के रक्त संचारण को उन्नत बनाने के लिए बाईब्रेटर के प्रयोग आदि को विशिष्ट उपचारों की श्रेणी में रखा जा सकता है। कटिस्नान प्रात:एवं सांय दस- दस मिनट का तथा सप्ताह में एक – दो बार गरम-ठंडा कटिस्नान लेना चाहिए। यदि कब्ज हो तो शरीर के बराबर तापक्रम के जल से रात में पेट की ठंडी-गरम लपेट देनी चाहिए नित्य प्रात: काल मौसम एवं शारीरिक शक्ति के अनुसार 15 मिनट से आधा घंटे तक नंगे बदन धुप ठंडे जल से स्नान करना चाहिए । इसके अतिरिक्त योगासनों का अभ्यास तथा प्रात:कालीन भ्रमण आदि भी विशिष्ट उपचारों की श्रेणी में आते हैं । दिन में कई बार 100 बार तक गहरी साँस लेने का अभ्यास उपयुर्क्त होगा । यह आवश्यक है की चिकित्सा की सलाह के अनुसार या उनकी देख- रेख में इन सब उपचारों का प्रयोग किया जाए ।
रोगी की दैनिक उपचार तालिका
प्रसिद्ध प्राकृतिक चिकित्सा डॉ.खुशी राम शर्मा “दिलकश” ने अपने पुस्तक “रोगों की प्राकृतिक चिकित्सा” में मधुमेह के रोगी की दैनिक उपचार तालिका निम्न प्रकार से दी है –
- प्रात: काल शौच जाने के बाद यदि पेट साफ न हूआ हो तो ताजे पानी का एनिमा लेना चाहिए । पेट पर मिट्टी की पट्टी 20 मिनट तक लेने के पश्चात् 5 से 10 मिनट तक का कटिस्नान लेकर तेजी से टहलना चाहिए । शाम को पुन: कटिस्नान लें । थोड़े दिनों के बाद प्रात: मेहन स्नान और शाम को कटिस्नान लेना जारी रखें । मेहन स्नान ठंडे जल से लें और कटिस्नान गर्मियों में ताजे जल से तथा सर्दियों में हल्के गूनगूने जल से लें । गर्म –ठंडा स्नान सप्ताह में एक दो बार लें ।
- मालिश और सैर विशेष रूप से लाभप्रद रहते हैं। मालिश लगभग 1 घंटे की होनी चाहिए । तत्पश्चात हल्के गर्म पानी से नहाना चाहिए। प्रात: 2-3 मील की सैर की जा सकती है । स्नान करते समय रीढ़ पर 5 मिनट तक ठंडा पानी डालें। स्नान उपरांत पूरे शरीर की सूखी मालिश करके शरीर का जल सूखा दें । पेट पर गरम–ठंडा सेंक सप्ताह में एक – दो बार तथा रात को सोते समय पेडू पर गीली लपेट लेनी चाहिए। नारंगी रंग की बोतल का सूर्यतप्त जल भाग मिलाकर 50 मि. ली. मात्रा में सुबह, शाम भोजन के बाद लें ।
- रक्त में बढ़ी हुई शर्करा को कम करने के लिये सारे शरीर की गीली लपेट या सूर्य स्नान जिससे पसीना निकल तथा गर्म तब स्नान या बिजली का सूखा स्नान रामबाण है । यदि रोगी अधिक दुबला हो गया हो तो गीली चादर की लपेट नहीं देनी चाहिए ।
- रात को सोने से पहले सम्पूर्ण शरीर का स्पंज देने के बाद रोगी को हल्के गर्म पानी का टब स्नान देने से नींद अच्छी आ जाएगी और बेचैनी भी दूर होगी। सम्पूर्ण शरीर का स्नान 92 डिग्री फारेनहाइट का लगभग 20 से 30 मिनट का अधिक लाभ पहुँचाता है।
- जहाँ व्यायाम और सैर जरूरी है वहाँ रोगी के लिए शारीरिक और मानसिक विश्राम भी अत्यंत आवश्यक है। ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना भी ऐसे रोगियों के लिए आनिवार्य है।